इज्जत के असली मायने: पद से नहीं, इंसानियत से: हिंदी प्रेरक कहानी

इज्जत के असली मायने: पद से नहीं, इंसानियत से: हिंदी प्रेरक कहानी

5 मिनट

पढ़ने का समय

शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे। शहर के मशहूर उद्योगपति और विधायक विश्वनाथ सिंह विशाल विला की बालकनी में झूले पर लेटे थे। सामने लॉन में लग्जरी कारों की कतार चमक रही थी। अंदर एयरकंडीशंड ड्राइंग रूम में विदेशी सोफे, कीमती पर्दे और दीवारों पर अवॉर्ड्स की चमक। नौकर-चाकरों की कोई कमी न थी, गेट पर सिक्योरिटी गार्ड्स तैनात। फिर भी घर में सन्नाटा पसरा था। विश्वनाथ जी का दिल उदास था – इतना धन, इतना पद, पर अकेलापन क्यों?​

पत्नी राधा खिड़की से उन्हें देख रही थीं। उनके हाथ की चाय कई बार ठंडी हो चुकी थी। वो याद कर रहीं – वो पुराना विश्वनाथ, जो हँसते हुए पूछते, "राधा, आज क्या स्पेशल बनाया?" अब तो फोन, मीटिंग्स, कॉन्ट्रैक्ट्स ही उनकी जिंदगी बन गए थे। बच्चे विदेश पढ़ने चले गए, माँ बूढ़ी हो गईं। धन-पद ने परिवार को छीन लिया था। राधा की आँखें नम हो आईं।​

1. जड़ें जो मिट्टी से जुड़ी रहीं

रात को बेडरूम में अकेले बैठे विश्वनाथ जी बेचैन थे। पुरानी यादें उमड़ आईं। गाँव का कच्चा मकान, आँगन में नीम का पेड़। दादाजी बड़े दिल वाले किसान थे – कम जमीन, पर गाँव भर का सहारा। बीमारी हो या शादी, सबकी मदद करते। "इज्जतदार खानदान" कहलाते। पिता श्यामलाल जी शिक्षक बने, शहर आए। किराए के छोटे घर में भी पड़ोसी मदद लेने आते। "मोहनलाल जी के घर से खाली हाथ कोई न लौटा," आज भी लोग कहते। विश्वनाथ बड़े भाई-बहनों संग सादगी से बड़े हुए। त्योहारों में गाँव लौटते, सबके साथ बाँटते।​

2. कॉलेज का 'सबका भैया'

कॉलेज के दिन स्वर्णिम थे। लंबे-चौड़े, हँसमुख विश्वनाथ मदद के लिए हमेशा तैयार। मोहल्ले में किसी बुजुर्ग की पेंशन अटके तो दौड़ते दफ्तर। गरीब दोस्त की फीस न भरे तो चंदा जुटाते। अस्पताल में रात भर मरीज के पास बैठे रहते। पड़ोस की कमला ताई उन्हें अपना बेटा मानतीं। "पहले मेरे विश्वनाथ को खिला दो!" उनकी गोद में खीर-पकौड़े खाते बड़ा हुआ। कॉलेज में 'विश्वनाथ भैया' हर किसी का अपना। लड़के-लड़कियाँ सब पसंद करते। लेकिन अमीर राहुल को जलन होती – "ये गरीबों के पीछे क्यों भागता है?"​

3. वो ताना, जो रास्ता मोड़ गया

कैंटीन में राहुल ने व्यंग्य किया – "लोगों के छोटे-मोटे काम कराते फिरते हो? पापा का एक फोन पहुँचा दो, घर बैठे हो जाएगा। पैसा ही असली ताकत है!" शब्द दिल में चुभ गए। रात भर नींद न आई। उसी वक्त चुनावी ऑफर आया। दोस्त बोले – "तू ही असली नेता!" पहले मना किया, पर 'पैसा-ताकत' की बात घर कर गई। चुनाव लड़े, भारी मतों से जीते। लेकिन जीत के साथ इंसानियत हार गई।​

4. पद ने इज्जत खा ली

कुर्सी ऊँची हुई, दिल छोटा। चमचे घेरने लगे, सच्चे दोस्त दूर। राधा कहतीं – "विमला चाची का बेटा बीमार है, मदद करो न!" वो फोन पर व्यस्त – "देख लेंगे..." जो नंगे पैर दौड़ते थे, अब एसी ऑफिस से बाहर निकलने में हिचकते। गरीबों की पुकार अनसुनी। घर में दूरी बढ़ी – बच्चे स्टाफ के हवाले, माँ की दवाइयाँ नौकरों पर। राधा चुपचाप सहती रहीं, आँखों में उदासी।​

5. रात का संकेत

पार्टी से लौटते कार सिग्नल पर रुकी। सुनसान सड़क पर लाठी टेकती बूढ़ी अम्मा। ड्राइवर चिल्लाया – "हट जाओ साहब की गाड़ी है!" विश्वनाथ ने शीशे से झाँका। चेहरा जाना-पहचाना। दिल धक् से रह गया। "रुको, पीछे लो!" उतरकर बोले – "माई जी, क्या हुआ?" अम्मा की आँखें नम – "वो पुराना विश्वनाथ ढूँढ रही हूँ... जो गरीबों की सुनता, नंगे पैर दौड़ता। अच्छा, लौट आए। वरना सोचती, मेरा बेटा खो गया।" चल दीं। विश्वनाथ पत्थर बने खड़े। 'मेरा बेटा' शब्द कानों में गूँज रहा था।​

6. कमला ताई से मुलाकात

रात भर नींद न आई। सुबह पहचाना – कमला ताई! पैदल पुरानी बस्ती। पुराना घर अब खाली प्लॉट, कचरा भरा। बगल वाले दरवाजे पर दस्तक। दस साल का बच्चा – "दादी, कोई मिलने आया!" कमला ताई निकलीं। कमर झुकी, लाठी का सहारा, पर चेहरा वही ममता भरा। विश्वनाथ को देख आँखें चमकीं – "जानता था, आएगा बेटा!" विश्वनाथ उनके चरणों पर गिर पड़े, गला भरा – "भुआ जी, माफ करो... भूल गया था सब।" ताई ने सिर सहलाया – "पद ऊँचा हो गया, अच्छा है। लेकिन जड़ें न भूलो। इज्जत बैंक बैलेंस से नहीं, गरीब के आँसू पोंछने से मिलती। असहाय का सहारा बने तभी इज्जतदार!" राधा पीछे खड़ी थीं, आँसू बह रहे। विश्वनाथ का दिल पिघल गया। गले लगे, सालों का पछतावा बह निकला।​

7. नया सवेरा – दिल से जीत

उस दिन से बदलाव आया। सुबह झुग्गी-झोपड़ियाँ घूमते। योजनाओं का पैसा सही जगह। अस्पतालों में गरीबों का मुफ्त इलाज। पार्टी मीटिंग में बोले – "कुर्सी पैसा कमाने को नहीं, लोगों की सेवा को!" लोग फिर 'विश्वनाथ भैया' कहने लगे। घर में चाय संग राधा से गपशप, बच्चों से वीडियो कॉल, माँ की दवाइयाँ खुद चेक। एक शाम राधा मुस्कुराईं – "अब सच्चे इज्जतदार लगते हो... पहले बस अमीर लगते थे।" विश्वनाथ बोले – "ये इज्जत तुमने और ताई ने लौटाई। धन-पद से नहीं, इंसानियत से जीत होती है।" बालकनी में झूला झूलते हुए परिवार संग हँसी गूँजी। खालीपन भर गया।​


संदेश

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि धन, पद और वैभव इंसान की असली इज्जत नहीं दे सकते। असली इज्जत दिल से मिलती है, जब हम अपने आसपास के गरीब, असहाय और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। इंसानियत के बिना कोई भी ऊँचा ओहदा सिर्फ एक नाम भर है। अपनी जड़ों से जुड़े रहना, दूसरों के दुखों को समझना और उनके लिए हाथ बढ़ाना ही वास्तविक सम्मान है। यही सीख हमें यह कहानी देती है कि असली इज्जत बाहरी चमक-दमक या पैसों से नहीं, बल्कि हमारे दिल से जुड़ी होती है।

लेखक: